26 अप्रैल को मनाई जाएगी कालाष्टमी, जानें काल भैरव की कहानी और पूजा विधि

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26 अप्रैल को मनाई जाएगी कालाष्टमी, जानें काल भैरव की कहानी और पूजा विधि

कालाष्टमी भगवान कालभैरव को समर्पित त्यौहार है। हर महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान कालभैरव की पूजा की जाती है साथ ही उनके लिए व्रत रखा जाता है। इस बार कालाष्टमी 26 अप्रैल को मनाई जाएगी। मान्यता है कि इस दिन पूजा आराधना करने से दुःख और भूत पिशाच दूर हो जाते हैं।

शिव का रूद्र अवतार माने जाने वाले भगवान काल भैरव काशी की रखवाली करते हैं। इसलिए उन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। कहते हैं कि कालाष्टमी का व्रत करने से रोग दूर भागते हैं और सभी कार्यों में सफलता मिलती है। पुराणों की मानें तो भैरव अष्‍टमी का दिन भैरव और शनि को प्रसन्न करने और भैरव जी की पूजा के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।


सबसे मुख्य कालाष्टमी को कालभैरव जयंती कहा जाता है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव भैरव रूप में प्रकट हुए थे। उत्तरी और दक्षिणी भारत में कालभैरव जयंती को अलग- अलग मान्यतों के अनुसार मनाया जाता है। उत्तरी भारत में जहाँ यह पुर्णिमांत पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में मनाई जाती है, वहीँ दक्षिण भारत के अमांत पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने में मनाई जाती है। हालांकि दोनों कालभैरव जयंती एक ही दिन पड़ती है।

क्या है कालाष्टमी की पौराणिक कथा?

शिवपुराण के अनुसार एक बार ब्रम्हा और विष्णु जी में इस बात को लेकर विवाद छिड़ गया कि श्रेष्ठ कौन है। इस बात को लेकर दोनों में युद्ध भी होने लगा। वेद से पूछे जाने पर उन्हें जवाब मिला कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं। वेद द्वारा की गई भगवान शिव की तारीफ ब्रम्हा जी को पसंद नहीं आई और उन्होंने अपने पांचवें मुंह से शिव जी को अपशब्द कह दिए। उसी समय शिव दिव्य ज्योति के रूप में प्रकट हुए। ब्रह्मा जी ने भगवान भैरव से कहा कि तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन के कारण मैंने तुम्हारा नाम रूद्र रखा है। इसलिए तुम अब मेरी सेवा में आ जाओ। ब्रम्हा जी की इस बात से गुस्से में आए शिव ने उसी समय काल भैरव को प्रकट किया और उन्हें ब्रम्हा जी पर राज करने को कहा। भगवान काल भैरव ने अपनी कानी उंगली के नाखून से ब्रम्हा जी के उस सिर को काट दिया जिसने शिव की बुराई की थी।


कैसे करें कालाष्टमी की पूजा?

कालाष्टमी की पूजा रात में की जाती है, क्योंकि माना जाता है कि बुरी शक्तियां रात में ज़्यादा ताकतवर होती हैं और उनका अंत भी रात में ही किया जा सकता है। इस दिन काल भैरव की पूजा के लिए स्नान करने के बाद भगवान शिव के भैरव रूप पर राख चढ़ाई जाती है। पूजा रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही पूरी होती है। इस दिन काले कुत्ते की भी पूजा की जाती है। पूजा करते समय भगवान काल भैरव की कथा सुननी चाहिए। व्रत के बाद पूजा के लिए उड़द, धूप, दीप, काले तिल आदि का प्रयोग करना चहिए।

किन मंत्रों का करें जाप?

शिव पुराण में कहा गया है कि भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं, इसलिए कालाष्टमी के दिन “अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!! मंत्र का जाप करना चाहिए।

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