भारत में समानांतर सिनेमा आंदोलन के जनक थे मृणाल सेन, दादासाहेब फाल्के समेत कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार किए थे अपने नाम

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भारत में समानांतर सिनेमा आंदोलन के जनक थे मृणाल सेन, दादासाहेब फाल्के समेत कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार किए थे अपने नाम

फिल्मी जगत के महान फिल्ममेकर मृणाल सेन को फिल्मों में उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता है। 20वीं सदी के इस बंगाली फिल्मकार ने अपनी फिल्मों में समाज की स्थिति को बड़ी खूबसूरती से जाहिर किया। आज उनकी जयंती है।

मृणाल सेन को भारतीय सिनेमा के उन महान फिल्मकारों में गिना जाता है, जिन्होंने अपनी फिल्मों से समाज को काफी प्रभावित किया। उनकी फिल्मों में समाज के यथार्थ की छवि साफ नजर आती थी। उनकी ज्यादातर फिल्में बांग्ला भाषा में थी, लेकिन इसके साथ उन्होंने उड़िया, तेलुगु और हिंदी फिल्मों में भी काम किया। मृणाल सेन को भारत में समानांतर सिनेमा आंदोलन का जनक माना जाता है।


शुरूआती जीवन

मृणाल सेन का जन्म 14 मई, 1923 को बंगाल के फरीदपुर में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा स्कॉटिश चर्च कॉलेज से पूरी की। इसके बाद उन्होंने मेडिकल रिप्रेंजेंटेटिव, पत्रकारिता और साउंड रिकॉर्डिंग जैसे कई काम किए। फिल्मों में आने से पहले मृणाल ने फिल्मों के बारे में गहराई से अध्ययन किया। वह फिल्मों में जीवन के यथार्थ को रचने से जुड़े और पढ़ने के शौकीन थे। उन्होंने सिनेमा पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित कीं, जिनमें ‘न्यूज ऑन सिनेमा’ (1977) तथा ‘सिनेमा, आधुनिकता’ (1992) शामिल हैं। मृणाल इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन (IPTA) के मेंबर भी थे। यह ग्रुप आम नागरिकों को प्रेरित करता था कि वे भी थियेटर से जुड़ समाज के हित के लिए काम करें।

फिल्मी करियर


फिल्मों में उनके करियर की शुरुआत 1955 में हुई। इसी वर्ष उनकी पहली फिल्म ‘रात भोर’ बड़े पर्दे पर आई। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं कर पाई थी। इसके बाद साल 1959 में उनकी दूसरी फिल्म ‘नील अक्षर नीचे’ आई, जो एक कामयाब फिल्म साबित हुई। साल 1960 में आई फिल्म ‘बाइशे श्रावण’ ने सेन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। फिल्म को काफी सराहा गया था। सेन की कुछ बंगाली फिल्में काफी सफल हुई। इनमें इंटरव्यू’ (1970), ‘कलकत्ता ‘71’ और ‘पदातिक’ शामिल हैं। मृणाल की इन फिल्मों को ‘कलकत्ता ट्रायोलॉजी’ कहा जाता है।

मृणाल सेन ने हिंदी सिनेमा में कदम 1969 में आई फिल्म ‘भुवन शोम’ से रखा था। इस फिल्म में उपयोग किए गए नए स्टाइल के दृश्य चयन और संपादन ने समानांतर सिनेमा की शुरुआत पर गहरा प्रभाव छोड़ा था। मृणाल सेन में एक खासियत ये थी कि वह फिल्मों के साथ एक्सपेरिमेंट करते रहते थे। अवशेष, अकाश कुसुम, अन्तरीन, एक अधूरी कहानी, परसुराम, चलचित्र, एक दिन अचानक, पुनश्च, महापृथ्वी, 100 ईयर्स ऑफ सिनेमा, सिटी लाईफ-कलकत्ता भाई एल-डराडो आदि उनकी बेहतरीन फल्मों में से हैं।

सम्मान

मृणाल सेन को फिल्मों में उनके बेहतरीन योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्हें 1981 में पद्म भूषण और 2005 में ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ से नवाजा गया। मृणाल सेन ने चार बार ‘नेशनल अवॉर्ड’ भी अपने नाम किए। वह 1998 से 2000 तक संसद के सदस्य भी रहे।

मृणाल ने कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म सम्मान भी अपने नाम किए। फिल्म ‘ख़ारिज’ के लिए उन्हें कान्स में ‘द प्रिक्स ड्यू ज्यूरी’ से नवाजा गया। साल 2000 में रूस सरकार द्वारा उन्हें ऑर्डर ऑफ फ्रैंडशिप भी दिया गया इसके बाद वर्ष 2008 में उन्हें ‘ओसियन सिने फैन फेस्टिवल’ और ‘इंटर नेसनल फ़िल्म फेस्टिवल’ द्वारा ‘लाइफ़ टाइम अचिएवेमेंट’ से नवाजा गया।

निधन

फिल्मों के प्रसिद्ध निर्माता और निर्देशक मृणाल सेन का 30 दिसम्बर 2018 को 95 साल की आयु में निधन हो गया। सेन ने लंबी बीमारी के बाद कोलकाता के भवानीपुर स्थित अपने आवास पर ही आखिरी सांस ली थी।

मृणाल सेन ने 2004 में अपनी आत्मकथा ‘आलवेज बिंग बोर्न’ पूरी की थी।

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