पालम: कहानी दिल्ली के उस गांव की जिसके पुरखों ने रखी थी लाल किले की नींव!

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पालम: कहानी दिल्ली के उस गांव की जिसके पुरखों ने रखी थी लाल किले की नींव!

देश की आन, बान और शान के प्रतीक लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री हर साल 15 अगस्त को झंडा फहराकर देश को संबोधित करते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि लाल किले का निर्माण प्रसिद्द मुगल बादशाह शाहजहां ने करवाया था। लेकिन क्या आपको ये पता है कि लाल किले की नींव में पहली ईंट दिल्ली के ही एक गांव के बुजुर्गों ने रखी थी। दिल्ली के सबसे पुराने गांवों में शुमार यह गांव है पालम। इस ऐतिहासिक गांव से जुड़ी हैं तमाम ऐसी कहानियां, जो कम ही लोग जानते हैं।

पालम गांव की चौधराहट से जुड़े किशनचंद सोलंकी बताते है कि जब   29 अप्रैल, 1639 को मुगल बादशाह ने लाल किले की नींव रखी थी तो पालम गांव के पांच बुजुर्गों को सम्मान के तौर पर बुलाया था। इन बुजुर्गों ने ही लाल किले की नींव में ईंट रखी थी, क्योंकि गांव को 360 गांव की चौधराहट मिली हुई थी। गांव के ही कुछ और लोगों का यह भी कहना है कि पालम गांव की मिट्टी में काफी शक्ति है, इसलिए भी बुजुर्गों को बुलाया गया था, ताकि किले की नींव मजबूत रहे।


बाबर के समय की मस्जिद भी है मौजूद

भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखने वाला शासक बाबर पालम गांव में आकर ठहरा था। किशनचंद बताते हैं कि जब बाबर दिल्ली आया तो पालम गांव में ही आकर ठहरा था, ऐसा भी सुनने में आता है कि उसने पालम को अपनी राजधानी बनाया था। बाद में अपनी राजधानी यहां से बदली। आज भी गांव में बाबर के समय की एक मस्जिद है, साथ ही उसके समय बनाई गई बावड़ी है। इसलिए भी इस गांव का बहुत ज्यादा ऐतिहासिक महत्व है।

गांव के नाम पर ही है एयरपोर्ट का नाम पालम

पालम गांव को बावनी भी बोला जाता है, क्योंकि पालम गांव की जमीन 52 गांवों से लगती है इसलिए इसे बावनी कहा जाता है। बलजीत सिंह सोलंकी बताते हैं कि दिल्ली एयरपोर्ट के लिए इस गांव की 1200 बीघा जमीन गयी है। इसलिए गांव के नाम पर ही इस एयरपोर्ट का नाम पड़ा। इतना ही नहीं, इस गांव से 12 गांव निकले हैं। ये गांव हैं पालम, बागडौला, शाहबाद मौहम्मदपुर, मटियाला, बिंदापुर, असालतपुर, डाबड़ी, नसीरपुर, गोयला खुर्द, नांगल राया, पूठकलां। ये सभी गांव दादा देव महाराज को आराध्य देव मानते हैं। दादा देव मंदिर में वैसे तो हर साल दशहरे पर मेला लगता है जिसमें लाखों लोग आते हैं। इसके अलावा हर साल तीज पर एक दंगल कराया जाता है। इस दंगल में जीतने वाले पहलवान को एक लाख का इनाम दिया जाता है। दंगल में दिल्ली, हरियाणा, यूपी, राजस्थान सहित कई राज्यों से पहलवान आते हैं।


क्या है पालम गांव का इतिहास

पालम गांव का इतिहास 1200 साल पुराना है। श्री दादा देव मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष बलजीत सिंह सोलंकी बताते हैं कि यह गांव सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं है बल्कि आस्था से भी जुड़ा हुआ है। हमारे पूर्वज टोंक जिले के टोडा रॉय सिंह गांव से आए थे। टोडा रॉय सिंह में दादा देव महाराज रहते थे। वे सारा दिन एक सिला पर बैठकर ध्यान में विलीन रहते थे। ऐसा भी लोक कहानी है कि उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दिव्य शक्तियां प्रदान कीं। इन दिव्य शक्तियों के जरिए वे गांव वालों का भला करते थे। कुछ समय बाद वे शिला पर बैठे हुए ही ब्रह्मलीन हो गए।

कुछ अरसे बाद इस गांव में अकाल पड़ गया। गांव वालों ने गांव छोड़कर जाने का निर्णय लिया, लेकिन वह भारी सिला वे बैलगाड़ी पर रखकर वहां से चल दिए। रास्ते में उन्हें भविष्यवाणी हुई की जहां भी ये शिला गिर जाए आप सभी वहां पर ही बस जाना। ये लोग चलते चलते पालम गांव आ गए। यहां आकर यह शिला गिर गई। लोगों ने वहां ही रहना शुरू कर दिया। आज जहां शिला है, वहां पर श्री दादा देव जी का एक भव्य मंदिर है। लोग यहां दूर-दूर से मन्नतें मांगने आते हैं।

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