यू. आर. अनंतमूर्ति को कन्नड़ साहित्य के नव्या आंदोलन का प्रणेता माना जाता है। कन्नड़ भाषा के मशहूर लेखक अनंतमूर्ति की आज पुण्यतिथि है। अनंतमूर्ति को 1994 में कन्नड़ साहित्य में उनके योगदान और आम आदमी के लिए लिखने की उनकी नई सोच के लिए साहित्य क्षेत्र के सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ से नवाजा गया था। 2013 के ‘मैन बुकर पुरस्कार’ पाने वाले उम्मीदवारों की अंतिम सूची में यू. आर. अनंतमूर्ति को भी चुना गया था।
यू. आर. अनंतमूर्ति से जुड़ी बातें…
– उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति का जन्म कर्नाटक के शिमोगा जिले में 21 दिसंबर 1932 को हुआ। इन्हें नव्या मूवमेंट का प्रणेता माना जाता है।
– उनकी रचनाओं के अनुवाद हिंदी, बांग्ला, मराठी, मलयालम, गुजराती सहित अनेक भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, रूसी, फ्रेंच, हंगेरियन आदि अनेक विदेशी भाषाओं में भी हुआ।
– अनंतमूर्ति ने मैसूर विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री हासिल की और बाद में स्कॉलरशिप लेकर पढ़ाई करने इंग्लैंड चले गए। इन्होंने बर्मिंघम विश्वविद्यालय से 1966 में ‘पॉलिटिक्स ऐंड फिक्शन’ पर डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की।
– पढ़ाई पूरी करने के बाद अनंतमूर्ति ने यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर में अंग्रेजी के प्रोफेसर के तौर पर अपना करियर शुरू किया। 1992 में नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन बने और 1993 में साहित्य अकादमी के अध्यक्ष बनाए गए।
– उनकी सबसे मशहूर और सबसे विवादित किताब 1970 के दशक में कन्नड़ में लिखी गई ‘संस्कार’ रही। इसमें उन्होंने ब्राह्मणवादी मूल्यों और सामाजिक व्यवस्था की भर्त्सना की है।
– अनंतूर्ति को ‘पब्लिक इंटेलेक्चुअल’ के रूप में याद किया जाता है, क्योंकि उनका एक सार्वजनिक जीवन भी था। वे अपने समय के यथार्थ में पूरी तरह धंसे हुए थे।
– अनंतमूर्ति कन्नड़ साहित्य में छठे शख्स हैं, जिन्हें ज्ञानपीठ से नवाजा गया। इन्हें राज्योत्सव पुरस्कार, मास्ती सम्मान, नदोजा पुरस्कार और 1998 में पद्म भूषण से नवाजा गया।
– 2014 लोकसभा चुनाव से पहले वह नरेंद्र मोदी की आलोचना को लेकर सुर्खियों में रहे। उन्होंने धमकी दी थी कि अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो वह देश छोड़ देंगे।
– 22 अगस्त, 2014 को 81 वर्ष की अवस्था में बैंगलुरू, कर्नाटक में यू. आर. अनंतमूर्ति का निधन हो गया।