भारत के पहले कमांडर-इन-चीफ (Commander-in-Chief ) के एम करिअप्पा की आज पुण्यतिथि है। वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने आजाद भारत की सेना की कमान संभाली। करिअप्पा ने 15 जनवरी 1949 को भारतीय सेना के अंतिम अंग्रेज शीर्ष कमांडर जनरल रॉय फ्रांसिस बुचर से यह पद लिया था।
के एम करिअप्पा उन दो अधिकारियों में से हैं, जिन्हें फील्ड मार्शल की पदवी दी गई थी। करिअप्पा को ‘कीपर’ के नाम से पुकारा जाता था। भारतीय सेना की कमान के एम करिअप्पा को 15 जनवरी 1949 को मिली थी। तब से ही हर वर्ष 15 जनवरी को भारत में सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
के एम करिअप्पा का जन्म 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक में हुआ था। उनका पूरा नाम कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा था, लेकिन घर में सब उन्हें प्यार से ‘चिम्मा’ कहते थे। उनके पिता कोडंडेरा माडिकेरी में एक राजस्व अधिकारी थे। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा माडिकेरी के सेंट्रल हाई स्कूल से पूरी की। साल स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1917 में मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। वह एक मेधावी छात्र होने के साथ- साथ क्रिकेट, हॉकी, टेनिस के अच्छे खिलाड़ी भी थे।
1942 में करिअप्पा किसी भी आर्मी यूनिट को कमांड देने वाले पहले भारतीय बने। 1946 में उन्हें ‘फ़्रंटायर ब्रिगेड ग्रुप’ का ब्रिगेडियर बनाया गया। फील्ड मार्शल रहे अयूब खान जो बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने, उन्होंने 1946 में करिअप्पा के अंडर काम किया था।
वर्ष 1947 में करिअप्पा को वेस्ट्रन कमांड का जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ बनाया गया और 15 जनवरी 1994 को वह भारत के कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किए गए। रिटायरमेंट के बाद करिअप्पा ने बतौर ‘इंडियन हाई कमिशनर’ ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में काम किया। वह यूनाइटेड किंगडम स्थित Camberly के इंपीरियल डिफेंस कॉलेज में ट्रेनिंग लेने वाले पहले भारतीय थे।
के एम करिअप्पा के महान कामों को देख कर उन्हें अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन द्वारा ‘Order of the Chief Commander of the Legion of Merit’ से सम्मानित किया गया। यूनाइटेड किंगडम से उन्हें ‘Legion of Merit’ की उपाधि मिली थी। उनकी सेवाओं के लिए भारत सरकार ने साल 1986 में उन्हें ‘Field Marshal’ का पद प्रदान किया।
15 मई 1993 को करिअप्पा का बैंगलोर कमांड हॉस्पिटल में निधन हो गया।