Makar Sankranti 2020: 14 या 15 जनवरी…कब है मकर संक्रांति, क्यों मनाते हैं ये पर्व, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

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Makar Sankranti 2021: अपने राशि के अनुसार मकर संक्रांति के दिन करें इन चीजों का दान, होगा शुभ

Makar Sankranti 2020: हिंदू धर्म और संस्कृति के लिहाज से मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। हिंदी कैलेंडर के अनुसार, माघ कृष्ण पक्ष की उदया चतुर्थी तिथि के सूर्य की मकर संक्रांति होती है। इस दिन सूर्यदेव धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास भी समाप्त हो जाएगा। इसके साथ ही शादी- ब्याह समेत तमाम शुभ कार्य भी शुरू हो जाएंगे। आमतौर पर हर साल 14 जनवरी या 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाती है। आइये जानते हैं साल 2020 में मकर संक्रांति का पर्व कब मनाया जाएगा..

कब है मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2020)

साल 2020 में सूर्य 14 जनवरी की शाम को मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। 14 जनवरी को संक्रांति ‘गर्दभ’ पर सवार होकर शाम को आ रही है। संक्रांति का उपवाहन मेष है। चूंकि सूर्य का राशि परिवर्तन सूर्यास्त के बाद होगा और संक्रांति का पुण्य स्नान सूर्योदय पर किया जाता है, जिसके कारण मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को होगा। इसलिए इस बार संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी।


मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2020) का शुभ मुहूर्त

पुण्यकाल: सुबह 07.19 से 12.31 बजे तक
महापुण्य काल – 07.19 से 09.03 बजे तक

मकर संक्रांति का इतिहास और मान्यताएं

आपको बता दें कि साल में कुल बारह संक्रांतियां होती हैं, जिनमें से सूर्य की मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति बेहद खास हैं | इन दोनों ही संक्रांति पर सूर्य की गति में बदलाव होता है। जब सूर्य की कर्क संक्रांति होती है, तो सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन और जब सूर्य की मकर संक्रांति होती है, तो सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। मतलब सूर्य के उत्तरायण होने का उत्सव ही मकर संक्रांति कहलाता है। इसलिए कहीं- कहीं पर मकर संक्रान्ति को उत्तरायणी भी कहते हैं। उत्तरायण काल में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं, वहीं दक्षिणायन काल में ठीक इसके विपरीत- रातें बड़ी और दिन छोटा होने लगता है।

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जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है, इस दौरान सूर्य की किरणों को खराब माना गया है, लेकिन जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। इस वजह से आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े लोगों और साधु-संतों को शांति और सिद्धि प्राप्त होती है।


स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि, उत्तरायण के 6 माह के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है, अत: इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है। महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था।

मकर संक्रांति का महत्व

मकर संक्रांति की तो कहा जाता है की मकर संक्रांति पर गंगा स्नान करने पर सभी दुख दूर हो जाते हैं। देवी पुराण में लिखा है कि जो व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता है। वह रोगी और निर्धन बना रहता है। इसलिए इस दिन स्नान-दान और जप-तप का खास महत्व है। विशेषकर मकर संक्रांति पर तिल-स्नान को अत्यंत पुण्यदायक बतलाया गया है। इस दिन प्रातः उगते हुए सूर्य को तांबे के लोटे के जल में कुंकुम, अक्षत, तिल तथा लाल रंग के फूल डालकर अर्घ्य दें।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन तिल-स्नान करने वाला मनुष्य सात जन्म तक आरोग्य को प्राप्त करता है, जातक रूपवान होता है उसे किसी भी रोग का भय नहीं होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन को किया गया दान भी विशेष फल देने वाला होता है । इस दिन कंबल, गर्म वस्त्र, घी, दाल-चावल की कच्ची खिचड़ी और तिल आदि का दान विशेष रूप से फलदायी माना गया है। मकर संक्रांति के दिन किसी गृहस्थ ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। इसके साथ ही गरीबों को यथासंभव भोजन करवाने से घर में कभी भी अन्न धन की कमी नहीं रहती है।

मकर संक्रांति के दिन तिल का अधिक से अधिक प्रयोग करें। आरोग्य, सुख एवं समृद्धि के लिये तिल का प्रयोग, तिल के जल से स्नान, तिल का दान, तिल का भोजन करें इस दिन स्नान से पूर्व तिल के तेल से मालिश करने, तिल का उबटन लगाने से समस्त पाप नष्ट होते हैं। इस दिन गुड़ एवं कच्चे चावल बहते हुए जल में प्रवाहित करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन खिचड़ी, तिल-गुड़ और पके हुए चावल में गुड़ और दूध मिलाकर खाने से भी भगवान सूर्यदेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं।


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